अलमारी की बातें।
सुनो हाँ सुनो ना।
ज़रा मेरी तरफ भी ध्यान करो ना।
आजकल मेरे नज़दीक आती नहीं।
बस दूर दूर से चली जाती है।
ज्यादा वक्त मेरे संग बिताती नहीं।
पहले तो घंटों मुझको सवारती थी।
नित नये रंगों से निखारती थी।
अब कुछ नया लाती नहीं।
नये नये तरीको से सजाती नहीं।
वही दो चार जोड़ी कपड़े लाती हो।
लाकर मेरी बगल में थमा देती हो।
ना कोई उमंग बची मेरे संग वक्त बिताने में।
पहले चार बाहर निकालती थी।फिर एक जोड़ा पहनती थी।
अब रोज में कहीं आना जाना रहता नहीं।
इसलिए उन्हीं कपड़ों को बार बार डाल लेती हो।
कभी-कभी उन्हें भी मेरे अन्दर रखती नहीं।
मन में कोई अलग का कोई चाव बचा ही नहीं।
बस एक शिकायत है तुम से।
मुझे पहले जैसा एक बार सवार लिया करों।
सर्दी में थोड़ी सी सांस लेने की।
राहत छोड़ दिया करो।
गर्मी के नये नये स्टाइल बहुत ज्यादा होते है।
थोड़ी होती राहत फिर भी मुझे ठूस जाती हो।
एक के ऊपर एक जरा ढंग से सेट करो।
मुझे जब भी खोलो एक सुखद एहसास करो।
करनी ना पड़ेगी फिर ऊफ! तुम्हे कभी।
थोड़ा थोड़ा समान रिटायर भी करे करों।
किसी जरूरतमंद को दोंगीं तो उसका भी भला हो जाएगा।
और तुम्हारा प्यार भी मुझसे बरकरार रहेगा।
ओह मेरी अलमारी तेरे मन की सब मैं जानू।
ध्यान रखुगी सब जो तूने बोला तेरी बात मैं मानू।
फालतू का समान का तुझ में ना रखुगी।
समय समय पर तुझको देख लिया करूँगी।
Ravi Goyal
08-Jun-2021 08:54 PM
Waah bahut khoob 👌👌
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